Friday, September 10, 2010

पुकार एक माँ की

जब कभी भी अपने देश के बारे मे सोचता हूँ , तो एक सुंदर सपना मन को ना जाने किस दुनिया मे ले जाता है। पर जब सपनो के धरातल से वास्तविकता मे प्रवेश करता हूँ तो रुह तक कांप जाती है। यह कुछ सोचने को मजबूर करती है। आज भ्रष्टाचार, भुखमरी, आराजकताओ से ग्रसित इस समाज को देखकर भी हमारा खून क्यों नही खौलता? हम इतने स्वार्थी हो गये हैं कि कोई हमारे सामने ही हमारी माँ का चीरहरण कर रहा है और हम खुशिया मना रहे हैं। कैसी विडम्बना है कि सब कुछ समझने और जानने के बाद भी हम सिर्फ़ तमाशा देख रहे हैं।

कश्मीर जो कभी देश का स्वर्ग कहलाता था, आज आतंक का पर्याय बन गया है। दंडकारन्य के वनों की हालत तो उससे भी ज्यादा खराब है। किसान आत्महत्या करने को विवश है, और हमारी सरकार हांथ पर हांथ धरे तमाशा देख रही है। हमारे देश के मन्त्री क्रिकेट खेलने मे लगे हैं । उनको इस बात कि को चिंता नही है कि कौन जिन्दा है और कौन मर गया। रेल घटनाओ मे होता इजाफ़ा हमारे देश के उच्चे पद पर सुशोभित नेताओ के अपने स्वार्थपुर्ति मे सन्लग्न रहने का नतीजा है, जिसका खामियाजा आज पूरा देश भुगत रहा है। आज laलाखों बच्चे ऐसे हैं, जिनका सपना सिर्फ़ विधालय का मुंह देखना है। अरे विद्द्यालय तो बहुत दूर कि बात है, उनको सही तरह से दो वक्त का खाना भी नही नसीब होता। आखिर कब तक हम यूँ ही जिन्दा रहेंगें। हमे चाहिये था कि हम अपने अधिकारो के लिये आवाज बुलंद करे और अपने कर्तव्य का पालन करे, हम सिर्फ़ एक परिवार कि तरफ़ देख रहे हैं कि वो हमारे सारे दुखो को दूर कर देगा। क्या देश मे सिर्फ़ एक नेहरू परिवार ही है जो हमारे देश को प्रगति की राह पर ले जा सकता है? आखिर कब तक हम ऐसे ही नपुन्सको कि भाँति हांथ पर हांथ धरे रहेन्गे?

हमारे देश के प्रधान-मन्त्री लाल किले से पूरे देश मे ऐलान करते हैं कि हम किसी भी तरह कि हिंसा का विरोध करेंगे। साथ ही वादा भी करते हैं कि नक्सल प्रभावित इलाको का विकास भी उनकी प्राथमिकता मे शामिल है। मै प्रधान मन्त्री जी से यह पुछना चाहता हूँ कि उनकी सरकार पिछले छह साल से सत्ता मे है, तब यह ख्याल क्यों नही आया? मेरा यह सवाल देश के सबसे पुराने और 55 सालो तक सत्ता मे रहने वाले दल (कान्ग्रेस) से भी है कि आप इतने सालो से सरकार मे हैं, पर क्या कभी हमारे वनवासी भाइयो का ख्याल नही आया? मै श्रीमान प्रधानमन्त्री जी से यह पुछना चाहता हुं कि क्या वह इस बात का वादा कर सकते हैं कि जो पैसा नक्सल प्रभावित इलाको के लिये आज आप देने की बात कर रहे हैं, हमारे देश के महान नेता के जेब भरने के काम नही आयेगा? क्या वह यह वादा कर सकते हैं कि हिंसा का रास्ता छोड देने पर मेरे वनवासी भाइयो कि समस्या समाप्त हो जायेगी? उनको उनके अधिकार दे दिये जायेंगे? फिर से उनका शोषण नही होगा? यह सवाल सिर्फ़ मेरा नही है , यह सवाल पुरे देश की जनता पुछ रही है।

!984 मे जब देश दंगों कि आग मे जल रहा था तब कोई नही था हमारे सिख भाइयो के आँसू पोछने वाला। जब कल्याण सिन्ह और आडवानी बाबरी मस्जिद को गिराने कि साजिश कर रहे थे, तब क्यो हमारे देश के नेता उन्हे रोकने का कोई उपाय नही कर रहे थे। गोधराकांड और उसके बाद के दंगों मे ना जाने कितनो को जिन्दा जला दिया गया, पर आज भी इस साजिश को रचने वाले ऐश कि जिन्दगी जी रहे हैं। हमारे देश के मन्त्री सँसद पर हमले कि साजिश रचने वाले अफ़जल गुरु कि फ़ान्सी सिर्फ़ इसलिये रूकवा देते हैं, क्योंकि उन्हे डर है कि कही उनके दल का समर्थन ना चला जाये। आखिर क्यो ? क्या इस क्यो का कोई उत्तर दे सकता है? क्या कोई इसके पीछे चल रही साजीश को समझ सकता है?

हमारी सरकार चाहती है कि देश मे धन का निवेश हो, पर जब निवेश होता है तो सिर्फ़ वोट बैंक के लिये उसे नकार दिया जाता है। वेदान्ता नियामगिरि मे खनन प्रक्रिया शुरु करना चाहती थी पर उसे भी वोट बैंक की राजनीति ने पंगु बना दिया। इस परियोजना से वहाँ के लोगो को ना केवल रोजगार मिलता अपितु वहाँ के लोगो के लिये विकास के अवसर भी खुलते। वेदान्ता इस परियोजना के अलावा अन्य परियोजनाओ मे भी निवेश करने जा रही थी, जिससे राज्य मे एक नई ऊर्जा का सन्चार होता। पर देश मे चल रही राजनीति गतिविधि ने इस अवसर को भी खत्म कर दिया।

आज सँसद मे एक बात की बहुत चर्चा है। साँसदो के वेतन मे व्र्रद्धि होनी चहिये। इसके लिये वह जो हँगामा कर रहे हैं वैसा हँगामा तो कभी लाखो किसानो कि आत्मह्त्या पर भी नहि हुआ। उन्हे इस बात कि कोइ चिन्ता नही है कि लेह मे मरे लोगो के कितने घरो कि मरम्मत हुई है जब कि बर्फ़बारी का मौसम दूर नही है। उनको इस बात का आभाष भी नही है कि हमारे देश कि 20% जनता आज भी रोज के दस रूपये पर जिन्दा है। इसतरह के नेताओ से हम क्या आशा करें।

आपको क्या लगता है कि इसके पीछे सिर्फ़ सरकार या हमारे नेता जिम्मेदार है। नही , इसके पीछे जिम्मेदार हैं हमभी। आखिर कब तक हम सरकार को जिम्मेदार मानते रहेंगे । कौन बनाता है इन नेताओ को। Haहम, क्योंकि हम इस जिम्मेदारि को लेना नही चाह्ते। हमारे लिये यह गँदी नाली कि तरह है जहाँ हमारे प्रिय माता –पिता भेजना नही चाह्ते। उन्हे शायद पुत्र प्रेम विवश करता है या शायद अपना स्वार्थ। चाहे जो भी कारण हो पर आज यह भारत भुमि तो स्वार्थ के दलदल मे तो चली ही गयी न। आज हम इसलिये नही मजबूर है क्योंकि हमारे पास सामर्थ्य नही है, पर हम इसलिये मजबूर हैं क्योंकि आज जिनके पास सामर्थ्य है वह मात्र तमाशा देख रहे हैं। इस बात को अच्छे से समझना होगा कि सिर्फ़ पैसे वाले सामर्थ्यवान नही होते, बल्कि सच्चा सामर्थ्य तो एक आत्म-विश्वास और सच्चाई से काम करने वाले के पास होता है। अगर ऐसा नही होता तो विवेकानन्द और भगतसिन्ह अपने मकसद मे कभी भी कामयाब नही होते। जब सुभाष चंद्र बोस ने देश से पलायन किया था तो उनके पास अपना कहने को कुछ नही था्। पर जब वह वापस आये तो एक पुरी आजाद हिन्द फ़ौज उनके साथ थी। यह होता है एक सामर्थ्यवान का सामर्थ्य।

ज़ब हमारे देश के इन महान आत्माओ ने अपना बलिदान दिया था तो एक ही स्वप्न था, अपने भारत को फिर से शिखर पर ले जाने का। अब उनके सपने को साकार करने कि जिम्मेदारी हमारी है। हमे फिर से एक क्रान्ति लानी होगी। इस स्वप्न को हर भारतीय का स्वपन बनना होगा। जिस भारत के निर्माण कि मै बात कर रहा हुं ,उस भारत मे कोई भी बच्चा भुख से विचलित नही होगा। हर भाई के पास अपना घर होगा। कमाने का एक साधन होगा। वह अपना और अपने परिवार का पालन करेगा। हर बच्चे को पुरी आजादी होगी अपने आपको विकास की धारा से जोड़ने की। कोइ माँ या बहन दहेज के लिये जिन्दा नही जलाई जायेगी। किसी भी माँ या बहन को अपने चरित्रहनन के लिये मजबूर नही होना होगा। हर गाँव और कस्बा आधुनिक उपलब्धियो से जगमगा रहा होगा। भाiiई भाई धर्म के नाम पर एक दूजे को नही मार रहे होंगे। meमेरे भारत मे भ्रष्टाचार , भुखमरी का कोइ निशान नही होगा। हर तरफ़ शान्ति और खूशहाली का राज होगा। एक रामराज्य होगा जहॉ हर किसी को तुरन्त और सही न्याय मिलेगा। फिर से सिर्फ़ प्रकाश ही प्रकाश होगा और इस प्रकाश मे सारा विश्व जगमगायेगा । हर कोई अपने आप को सुरक्षित महसूस करेगा। मेरे उस भारत मे किसी भी तरह की हिंसा का कोई स्थान नही होगा। हर तरफ़ शांति और बस शांति ही होगी। जब हम ऐसा भारत बनाने मे कामयाब होंगें तभी हम सच्चे भारतीय कहलाने के अधिकारी होंगें।

पर यह सुनने मे जितना आसान है , वास्तव में यह उतना आसान नही है। हर क्रांति बलिदान मांगती है। बलिदान अपने आराम का। अप्ने स्वार्थो का। बलिदान अपनी जिंदगी का और हर उस वस्तु का जो हमे सबसे ज्यादा प्रिय है। जो इसके लिये तत्पर होगा वही सच्चा भारतीय है। जब इस तरह के चरित्रवान और सामर्थ्यवान आदमी अपने आप को इस पवित्र जन्मभुमि को समर्पित करेंगें तभी हमारा देश उस शिखर पर पहुँचेगा। सिर्फ़ चरित्रवान और सामर्थ्यवान ही इस समाज मे परिवर्तन ला सकते हैं । पर यह क्रान्ति तब तक सफ़ल नही हो सकती जब तक सभी एक साथ एक ही मंच पर नही आ जाते। अलग अलग रह कर मंजिल पर पहुँचना सँभव नही है। आज भारत माँ चीखचीख कर अपने पुत्रो का आह्वान कर रही है। देखना है, कितने लोग इस आह्वान को सुनकर इस चुनौ्ती को स्वीकार करते हैं। अन्त मे एक बात मै सब को बता देना चाह्ता हुं कि चाहे कोइ कितना भी प्रयास क्यों ना कर ले हमे रोक सकने का सामर्थ्य किसी मे नही है। अब देश कि जनता को निश्चय करना है कि क्या वो देश निर्माण मे हमारा साथ देगी ,या फिर चुप्पी मार कर शर्मशार होती अपनी इस धरती माँ का अपमान सहती रहेगी?

जय हिंद

प्रदीप कुमार मित्तल

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